चोरों से बंधी हुई चोरों की डोर है.. गली-गली शोर है गली- गली शोर है..। आखिरकार हो गई दूध माफियाओं की सांठगांठ..।
"चर्चित की चर्चा"
सुना है आज से दूधियों का दूध मार्केट में बिकने आ रहा है..!!
पर... ये लोग तो खुश नहीं थे जिलाधिकारी के निर्देश से ..??जबकि ये(दूध उत्पादक ओर डेयरी संचालक) लोग खुद ही गए थे अपना मैटर सुलटवाने कि, हमको भी खाने दें,डेयरी वाले भी खाएं, तो क्या जनता अपनी.....??? जबकि ग्राहकों की हितरक्षक ग्राहक पंचायत भी थी मौजूद सभागार में। फिर भी कलेक्टर शिवपुरी ने सिर्फ़ दोनों पक्षों को मुख्य फरियादी मानते हुए अपना निर्णय कह सुनाया।
यहां ग्राहक तो बेचारा ही बना रह गया क्यूंकि,ग्राहक पंचायत ने उसका पक्ष तो रखा पर शायद संगठन को इतनी तब्ज्जो नहीं दी गई। ग्राहक पंचायत के सदस्यों ने पुरजोर आवाज उठाना भी चाही, पर आवाज़ दवा दी गई।आवाज़ थी कि जब अप्रैल में दूधियों ने दूध 50 से 55 किया था, तब यह बात डेयरी संचालक के साथ तय हुई थीकि, गर्मी जाते ही दूध दोबारा 55 से 50 रूपए हो जाएगा। पर जब समय आया तो, दोनों पक्षों के लिए तो फायदे के निर्देश दिए गए यानिकि, कलेक्टर ने दूधिया के 47.50 और ग्राहक के लिए 52 रूपए रखा (जिसे दूधियों ने न मानते हुए हड़ताल जारी रखने का आह्वान किया) पर ग्राहक की किसी ने नहीं सुनी कारण...??
शीशा टूटे गुल मच जाए, दिल टूटे आवाज़ न आए..
सांप डसे तो दोस्त बचाए दोस्त डसे तो कौन बचाए..
अपनों से तो गैर ही अच्छे, घर का भेदी Lanka ढाए..।
यहां आपको जानना होगा कि, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुषांगिक संघठन है।और भारतीय जनता पार्टी भी संघ का ही हिस्सा है।
ग्राहक पंचायत शिवपुरी अपनी बात को जिलाधीश को समझा पाता उससे पहले ही एक स्थानीय पर स्तंभित नेता ने पूरा मामला हाईजेक कर लिया..। और ग्राहक पंचायत थी कि ठगी की ठगी रह गई..। जो अपने आप में बड़ा विषय है..!
सुना है दूधियों और डेयरी संचालकों ने शाम को आपस में ट्यूनिग बिठा ली, कि तू मेरी मत कह मैं तेरी नहीं कहूंगा..
तू 50 का भाव लेना मुझसे दूध का, मैं 55 का भाव वसूलता रहूंगा..।
जानते हो ऐसा क्यों हुआ?
क्योंकि कलेक्टर शिवपुरी ने कहा था कि अगर दूध उत्पादक और डेयरी संचालक अगर इस फैसले को नहीं मानते हैं तो, हम ख़ुद (प्रशासन) व्यवस्था कराएंगे पर दूध की किल्लत नहीं होने देंगे। यहां कलेक्टर की बात को अमलीजामा पहनाने सांची दूध डेयरी भी बैठा था अपनी बंदूक को लोड करे हुए कि, आप तो कहो हुजूर मैं सुबह ही 25 हज़ार लीटर (जितनी खपत है) दूध मार्केट में उतार देता हूं।
बस यही डर (दूध उत्पादक और डेयरी संचालक) दोनों को सता रहा था। अतः गुपचुप में दोनों ने मिलकर फैसला ले लिया, जिसमें प्रशासन को इन्वॉल्व करना उचित नहीं समझा।
ये तो ठीक है पर कलेक्टर की बात की बजनदारी का क्या?? आखिरकार जिला दंडाधिकारी की बात कि मर्यादा नहीं रखनी थी तो फिर,उनके दर पर आए ही क्यों थे..?
और उन नेता जी का क्या रहा? जो दोनों पक्षों को सेट कराने घंटों कलेक्टर कक्ष में दोनों पक्षों की वकालत करते रहे ???
अब इस बात की गारंटी कौन लेगा, कि 55 के बाद भी दूधिया 1 किलो दूध में 200 ग्राम तक खोबा बाला दूध आम जनता को दे सकेंगे ??
और नहीं दिया तो मॉनिटरिंग कौन करेगा???
अब जिलाधीश को भी यहां अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए उसका निर्वाहन करना चाहिए। क्योंकि बात आपके आदेश की है, और चोर ही आपके आदेश-निर्देश को हल्के में लेंगे तो कैसे चलेगा..??
जबकि माननीय सांसद ने भरे मंच से रसद माफिया को आड़े हाथ लेने को कहा है।
ओर फिर दूध तो आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कलेक्टर के अधिकार क्षेत्र में आता ही है जो ये कहता है👇
(भारत सरकार ने 1991 में डेयरी क्षेत्र को लाइसेंस मुक्त करने के परिणामस्वरूप आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत 9/6/92 को दूध और दूध उत्पाद आदेश (एमएमपीओ) 1992 को प्रख्यापित किया था।) आदेश पत्र (order sheet) नीचे संलग्न है।
पूछता है शिवपुरी..??
क्या अब डेयरी संचालकों के संस्थानों पर औचक निरीक्षण (जिसमें शक्ति परीक्षण हो) होगा..?
क्या डेयरी संचालक रजिस्टर्ड किए जायेंगे...?
क्या दुग्ध उत्पादक भी रजिस्टर्ड होंगे..?
और सबसे अहम सवाल, क्या जनता को सही गुणवत्ता का दूध मिल पाएगा..??
सवाल गहरा है..!!
,But there is hopes...
then you decide to do something good for the masses.
When you think "cost is not matter" but it will be done,then see the picture of your honesty by everyone.
लेखक:- वीरेन्द्र "चर्चित"
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