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नगर पालिका शिवपुरी के खिलाड़ियों का एक और नया खेल, बाल में से खाल निकाली फिर निकाला तेल....

नगर पालिका शिवपुरी के खिलाड़ियों का एक और नया खेल, बाल में से खाल निकाली फिर निकाला तेल....


पहले पॉलिथीन की गाड़ी से वसूला 44000 का जुर्माना फिर उसे लगभग 56000 की टेंडर बोली में बेच दिया.. उसके बाद भी मन भरा तो नियम विरुद्ध बिनिस्ट्रीकरण के नाम पर भी हुआ लेनदेन का खेल..

।।चर्चित समाचार एजेंसी।।
।।शिवपुरी 01/03/25।। शिवपुरी नगर पालिका जिम्मेदारों की जिम्मेदारी से इतनी चर्चाओं में रहती है कि आए दिन कोई ना कोई घपले - घोटाले सामने आते ही रहते हैं। कभी साफ सफाई में, कभी निर्माण कार्य में, कभी गाड़ियों के डीजल में, तो कभी उनकी मरम्मत में, कभी सैलरी में भी पेंच लगा देते हैं यहां के कर्मचारी और अधिकारी। हाल ही में शिवपुरी नगर पालिका द्वारा एक पॉलिथीन से भरे ट्रक जिसमें लगभग 74 कुंटल पॉलिथीन भरी हुई थी कि निविदा जारी की गई थी। निविदा पूरे नियम से हुई पर इसके बाद भी नगर पालिका के रक्त पिपासुओं ने रक्त पीने से गुरेज नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि जो कार्य का टेंडर जारी होकर ठेका हो गया था उसकी लोड गाड़ी को वापस नगरपालिका ने अपने प्रांगण के कमरे में खाली करवा लिया। और इसको रुकवाने की जो भूमिका रही वह नगर पालिका अध्यक्ष और पार्षदों की रही, क्योंकि उनको यह एहसास हो गया था कि इस पूरे कार्य में कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार किया गया है इसीलिए  अध्यक्ष और कुछ पार्षद एकजुट होकर के नगर पालिका प्रांगण में पहुंच गए, फिर जो विवाद की स्थिति बनी उसमें नगर पालिका के कर्मचारियों ने गाड़ी के ड्राइवर को माल वापस कमरे में रखने के लिए कह दिया। पर इस कांड में सभी पार्षद एक मुंह होके बोले ऐसा भी नहीं था। और सभी कर्मचारी और अधिकारी ने रक्त पिया ऐसा भी नहीं था। तो क्या था इस पूरे खेल के अंदर खेल..?  हम डिटेल में आपको समझाते हैं।
सीन नंबर 1....
सबसे पहले देहात थाने ने आज से कुछ माह पूर्व एक पॉलिथीन से भरी डीसीएम (मिनी ट्रक) गाड़ी पकड़ी जिसका पंचनामा बनाकर लगभग 74 कुंटल पॉलिथीन नगर पालिका शिवपुरी को सुपुर्द कर दी।
सीन नंबर 2...
नगर पालिका शिवपुरी ने इस गाड़ी का जिसमें भरा माल (पॉलिथीन) का बाजार भाव से आकलन कर लगभग 44000 का जुर्माना बनाया। उसके बाद इसका बिनिस्टीकरण कर रीसाइक्लिंग की प्रक्रिया के लिए निविदा जारी कर दी। निविदा में चार फार्मो ने भाग लिया। राम प्लास्टिक, अग्रवाल पालीमार, गोल्डी एजेंसी और मेंहदीपुर बालाजी । जिन्होंने लगभग 4,5 और 7 रूपए किलो की बोली निविदा में अंकित की। दिल्ली की फर्म मेंहदीपुर बालाजी को यह ठेका मिल गया क्योंकि उसने ही इन सबसे अधिक बोली यानी ₹7 किलो के हिसाब से श्रेड (shred- कतरन) करने की दर निविदा में भरी थी और वही दर नगर पालिका शिवपुरी ने पास कर ठेका भी दे दिया। 
सीन नंबर 3...
अब जब ठेका लेने के बाद फर्म ने माल को बिनिस्टीकरण  एवम रीसाइक्लिंग के लिए ले जाना चाहा तो नगर पालिका अध्यक्ष गायत्री शर्मा ने ऐसा होने से रोक दिया। पूछने पर कारण बताया कि यह माल का टेंडर हुआ वहां तक तो ठीक है, हम इसकी कम और ज्यादा कीमत पर बात नहीं करेंगे पर बात तो यह है कि जब यह माल यहां से दिल्ली चला गया और वहां जाकर वादे अनुसार इसको श्रेड कर रीसाइक्लिंग प्रक्रिया में नहीं लाया गया तो यह माल वापस फिर बाजार में बिकने आएगा। जिससे हमारी मेहनत पूरी तरह बेकार हो जाएगी और नतीजा फिर वही पॉल्यूशन...। जानवर इस पॉलिथीन को खाकर मरेंगे,चारों तरफ कचरा दिखेगा और जनता हमसे जवाब मांगेगी । तो हम चाहते हैं कि इसका बिनिस्टीकरण मेरे और मेरे सभी पार्षदों की सामने ही हो..
सीन नंबर 4...
 कुछ पार्षदों ने इस पूरी प्रक्रिया को संदेहास्पद मानते हुए यह आरोप लगाया कि नगर पालिका के अधिकारी कर्मचारियों ने कंपनियों से सांठ गांठ कर औने-पौने दामों में कीमत लगवा कर 1400000 (चौदह लाख) के माल को 56000 (छप्पन हज़ार) में बेच दिया यानि कि 200 रूपए किलो की पॉलिथीन को मात्र 7 रूपए किलो के दाम में बेच दिया। जिससे नगरपालिका को लाखों रूपए की चपत लग रही है अतः इस पॉलिथीन का रिटेंडर होना चाहिए।
सीन नंबर 5.......
जब इस पूरे प्रकरण की जानकारी नगर पालिका प्रभारी HO योगेश शर्मा से प्राप्त करना चाही तो उन्होंने कहा कि हमने निविदा की पूरी प्रक्रिया सही तरीके से की है, और सारे प्रकरण में पारदर्शिता रखी है। लेने वाली फर्म लीगल है उसके पास रीसाइक्लिंग का प्लांट है और प्रदूषण बोर्ड का सर्टिफिकेट भी है। इसके बाद भी अगर किसी को कोई परेशानी है, तो वह अपनी आपत्ति दर्ज करा दे,हम यह माल यहीं रुकवा देंगे। हमारे पूछने पर कि पार्षदों का आरोप है कि यह माल रिसायकल के लिए जाएगा इसकी क्या गारंटी है..?  दिल्ली जाने के बाद यह माल वापस विक्रय के लिए पहुंच गया तो कैसे पता लगेगा..?  क्या यहां पर विनिस्टीकरण नहीं हो सकता है..? इस सवाल पर श्री शर्मा ने कहा कि  शिवपुरी जिले में यह व्यवस्था उपलब्ध नहीं है इसलिए हमको उन पर ऐसा विश्वास करना ही पड़ेगा, क्योंकि इस प्लांट को लगाने के लिए पूरी अनुमति लेनी पड़ती है और यह काफी महंगी प्रक्रिया है, जिस वजह यहां पर विनिस्टीकरण नहीं हो सकता है। साथ ही साथ वह अपने ऊपर आने-वाले तमाम राजनीतिक प्रेशर को भी बताते रहे। कहा कि आप लोग कुछ भी कहें पर मैंने नगर पालिका के हित में काम किया है, पहले उस माल पर 44000 का जुर्माना लगाया उसके बाद उसको टेंडर के माध्यम से 56000 में बेच दिया। ऐसे करके मेरे द्वारा लगभग एक लाख रुपए का संस्था को फायदा पहुंचाया गया है।
सीन नंबर 6...........
शाम के समय हमारे द्वारा सीएमओ इशांक धाकड़ से इस प्रकरण के बारे में बातचीत की तो उनका जवाब HO योगेश शर्मा से अलग था। वह कह रहे थे कि बात सही है कि हमने टेंडरकॉल किया था, तीन फर्म भी आई थी और उसमें से एक फर्म जिसकी अधिक बोली थी उसको हमने यह ठेका दे दिया था पर हमारी निविदा में एक शर्त थी कि, पॉलिथीन का श्रेड यानि कि विनिस्टीकरण हमारे जनप्रतिनिधियों के सामने ही होना चाहिए जिसे उस संस्था के द्वारा फॉलो नहीं किया गया तो हमने इस प्रक्रिया को रोककर माल अपने कब्जे में ले लिया।
कनक्लूजन/conclusion (निष्कर्ष).... ....  इस सारे खेल में एक बात सामने आ रही है कि जब श्रेड की प्रक्रिया को अध्यक्ष और पार्षदों के सामने ही करना था तो फिर  प्रभारी HO योगेश शर्मा ने हमसे यह बात क्यों छुपाई..?  क्या इस पूरे प्रकरण के पीछे उनकी कोई छुपी हुई मंशा थी..? अगर बात भ्रष्टाचार की थी, तो इस सबके पीछे कौन जिम्मेदार था..?  क्योंकि तीन लोगों पर नगर पालिका के इस कांड की सुई घूम रही है। नगर पालिका अध्यक्ष की बात करें तो उन्होंने खुद पत्रकारों को सूचना देकर के वहां पर पहुंचाया था। वहीं बात सीएमओ की करते हैं तो उन्होंने खुद यह बोला कि श्रेडिंग कि प्रक्रिया जनप्रतिनिधियों के सामने ही होनी थी दिल्ली ले जाने का तो सवाल ही नहीं था..।  फिर बात सीधी- सीधी हेल्थ ऑफिसर योगेश शर्मा पर आती है कि,आखिर उन्होंने इतनी हिमाकत कैसे कर ली...?  कि गाड़ी लोड हो रही है,सवाल किया जा रहा है और ज़बाब यह है कि हमारी शिवपुरी में यह व्यवस्था ही नहीं है। अगर व्यव्स्था नहीं तो सीएमओ ऐसा क्यों बोले, और है तो प्रक्रिया अपनाई क्यों नहीं गई। क्या इस खेल का मास्टर माइंड ख़ुद HO साहब हैं..?  या फिर कोई और मास्टरमाइंड है..?  इस सवाल का सही जवाब तो तब मिलेगा जब कलेक्टर द्वारा इस प्रकरण की सही जांच कराई जाकर दूध और पानी को अलग-अलग कर दिया जाए।
लेखक:-वीरेन्द्र "चर्चित"
मोब. 9977887813

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